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मेरी कविता / विनोद तिवारी

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मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो
मधुर मोहिनी मधुऋतु बन कर
सुरभित, सुमनित, सुस्मित बन कर
मेरे मन की मरुस्थली पर
श्यामल बदली सी बरसेगी।
मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो
किसी फूल की पंखुरियों पर
ओस बिन्दु बन कर छलकेगी।

मूक हृदय के स्पन्दन में कितने कोमल भाव प्रतिध्वनित।
युगों युगों की सुप्त वेदना मेरे गीतों में प्रतिबिम्बित।
मेरी पीड़ा अगर कभी मुस्कान हुई तो
सागरिका की लहर लहर पर
शुभ्र ज्योत्सना सी थिरकेगी।
मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो...

इन्द्र धनुष के रंग सजाये एक मनोरम प्रतिछवि उज्जवल।
एक प्रेरणा, एक चेतना, संग संग चलती जो प्रतिपल।
मेरी यह अनुभुति कभी अभिव्यक्ति हुई तो
स्नेहसिक्त, गीली आँखों से
आँसू बन कर के ढलकेगी।
मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो...

कुछ करने की आकाँक्षा है, कुछ पाने की अभिलाषा है।
सारे स्वप्न सत्य होते हैं, जीवन की यह परिभाषा है।
मेरी आशा अगर कभी विश्वास हुई तो
हिमगिरि की पाषाणी छाती
से गंगा बन कर निकलेगी।
मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो...

कितना है विस्तार सृष्टि में, फिर भी कितनी सीमायें हैं।
सब कुछ है उपलब्ध जगत में, फिर भी कितनी कुंठायें हैं।
मेरी धरती अगर कभी आकाश हुई तो
अन्तरिक्ष में उल्का बन कर
टूट टूट कर भी चमकेगी।
मेरी कविता अगर कभी साकार हुई तो...