Last modified on 19 नवम्बर 2016, at 16:51

सुनो पार्थ! / मंगलमूर्ति

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 19 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगलमूर्ति |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब कभी तुम्हें लगता है
एक घोर अँधेरा अपने चारों ओर
जब कुछ नहीं सूझता तुम्हें
उस घुप्प अँधेरे में
जब सांस घुट रही होती है तुम्हारी
उस काले अभेद्य अँधेरे में
और दिल डूब रहा होता है तुम्हारा,
तब कौन अचानक तुम्हारा हाथ थाम लेता है?
कौन देता है सहारा तुम्हें
तुम्हारी पीठ पर अपना हाथ रख कर?
और तभी तुम्हें दिखाई देती है
प्रकाश की एक किरण फूटती हुई
उस काले घने अँधेरे में भी
सांस में सांस लौट आती है तुम्हारी
एक मुस्कराहट छा जाती है तुम्हारे होठों पर
और चमक उठती हैं तुम्हारी आँखें जब
उस किरण की जोत से
तब तुम्हें नहीं लगता
वह तुम्हीं हो?
तुम्हीं तो वह कृष्ण हो
और तुम्हीं हो अर्जुन भी!