मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैं
वरना इन्सान भी जैसे मशीन लगते हैं।
उन से उम्मीद थी लोगों के काम आयेंगे
पर, वो अपने ग़ुरूर के अधीन लगते हैं।
जो हवाओं का साथ पा के निकल जाते हैं
ऐसे बादल भी मुझे अर्थहीन लगते हैं।
हुस्न की बात नहीं, बात है भरोसे की
फूल से ख़ार कहीं बेहतरीन लगते हैं।
जेा क़िताबें नहीं इन्सानियत का पाठ पढ़े
वही आलिम, वही मुझको ज़हीन लगते हैं।
धूल में खेलते बच्चे को उठाकर देखेा
अपने बच्चे तो सभी को हसीन लगते हैं।