Last modified on 23 जनवरी 2017, at 12:35

आखिर कितना सहता / प्रमोद तिवारी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आकार बिना
सत्कार बिना
आखिर कब तक
रहता पानी
आँखों से
बरबस ढुलक पड़ा
आखिर कितना
सहता पानी

ये गंगा जल की
धारा भी
ये पैमानों की
प्यारा भी
मीठा-मीठा
फब्बारा भी
खारा-ाारा
गुब्बारा भी
हर घाट निछावर
आप रहे
फिर भी सूरज का
ताप सहे
बनकर बादल
उड़ गया कहीं
आखिर कितना
दहता पानी

ऊँची-नीची
इन राहों का
गहरी से गहरी
थाहों का
ये घेरा प्यासी
बाहों का
ये है गवाह
चरवाहों का
फिर भी अटका
जब-जब भटका
भर गया
कोई खाली मटका
पर्वत से सागर
तक आया
आखिर कितना
बहता पानी

धरती का
पहला दरपन है
दरपन
जीवन का दर्शन है
छवियों का
पूर्ण समर्थन है
फिर भी निर्जन का
निर्जन है
बेचैन दिख रहा
प्रहरों से
मर्यादा खोती
लहरों से
भर लिया राम को
गोदी में
पानी से क्या
कहता पानी