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उल्टे सीधे पांव / प्रमोद तिवारी

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अपने साथ-साथ
चलता है
नाम शहर का
गांव का
हमको तो
खयाल रखना है
उल्टे-सीधे पांव का

अपने पास
पसीने वाली
रोटी है
सोंधी-सोंधी
अपनी जंग पेट से
बिलकुल
सीधी-सीधी होती है
अब तक तो मैं ही
जीता हूँ
काट नहीं
इस दांव का

हवा हमारे
कहने में है
पानी रहे रवानी में
धरती से अम्बर तक
हम भी
शामिल हुए
कहानी में
ठंड हमें तोहफा देती है
जलते हुए अलाव का

जो महकें
वो चुभें सांस में
ऐसी फुलवारी से क्या
मौके पर
विश्वास डिगा दे
ऐसी तैयारी से क्या
हमको तो लहरों ने साधा
काम नहीं
कुछ नाव का

मंचों पर आ गये
कृपा है
आगे यही प्रार्थना है
मंचों से
पंचों तक पहुंचे
बाकी यही साधना है
धूप-धूप चलकर
आये तब
पता मिला है
छांव का