Last modified on 1 फ़रवरी 2017, at 23:09

सावन / श्वेता राय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:09, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्वेता राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घिर रही काली घटायें, मधु धरा सरसा रही।
सावनी ये ऋतु सुहानी, याद पिय की ला रही॥

बाग़ में झूले पड़े हैं, मेघ अम्बर छा रहे।
बूँद रिमझिम है बरसती,देख सब हरसा रहे॥
बह रही पुरवा निगोड़ी, गीत कोयल गा रही।
सावनी ये ऋतु सुहानी, याद पिय की ला रही॥

हरित वसना बन धरा ये, सज गई नव रूप में।
बावली बन घूमती है, छनकती है धूप में॥
द्युति दमक कर मन धरा पर, मधु कहर बरसा रही।
सावनी ये ऋतु सुहानी, याद पिय की ला रही॥

भूल कब पाती प्रिये मैं, पावसी पल प्यार में।
आ रहे थे पास जब हम, प्रेम के संसार में॥
हो सुगंधित फूल बगिया, श्वास को महका रही।
सावनी ये ऋतु सुहानी, याद तेरी ला रही॥