ठहर! विदा तो बोल
मन की पीड़ा के पन्नों पर
असुअन की जो स्याही है
उससे अंतर की व्यथा को अब मुझ पर तू खोल
ठहर! विदा तो बोल
विरह वेदना तो आती है
मिलन भरे हर पल के बाद
जीवन की इस सच्चाई में रस मीठा तू घोल
ठहर! विदा तो बोल
भोर रश्मियाँ जब आती हैं
यादें तेरी बिखराती हैं
प्रीत पगी रातों का होता कब कोई है मोल
ठहर! विदा तो बोल
जाना तुमको है तो जाओ
मन के गागर को छलकाओ
भीगे मेरे नयन कोर को समझे तू बेमोल
ठहर! विदा तो बोल..