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...के नाम / अलेक्सान्दर पूश्किन

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मुझे याद है वह अद्भुत्त क्षण
जब तुम मेरे सम्मुख आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
जैसे उड़ती-सी परछाईं।

घोर उदासी, गहन निराशा
जब जीवन में कुहरा छाया,
मन्द, मृदुल तेरा स्वर गूँजा
मधुर रूप सपनों में आया।

बीते वर्ष, बवण्डर आए
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने,
किसी परी-सा रुप तुम्हारा
भूला वाणी, स्वर पहचाने।

सूनेपन, एकान्त-तिमिर में
बीते, बोझिल, दिन निस्सार
बिना आस्था, बिना प्रेरणा
रहे न आँसू, जीवन, प्यार।

पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुख आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
मानो उड़ती-सी परछाईं।

हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित है
फिर से झंखृत अन्तर-तार,
उसे आस्था, मिली प्रेरणा
फिर से आँसू, जीवन, प्यार।


रचनाकाल : 1825