Last modified on 4 फ़रवरी 2017, at 16:18

धन्य सुरेन्द्र / प्रतापनारायण मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 4 फ़रवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र हितकारी।
धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय अधिकारी॥

कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन वारी।
सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर धारी॥

उन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत लबारी।
करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत निहारी॥

दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत अविचारी।
यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत भारी॥

धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो महतारी।
परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि सारी॥