Last modified on 4 फ़रवरी 2017, at 17:50

मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:50, 4 फ़रवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जय जय भारतमातु मही।
द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही॥
जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै।
सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै॥
श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी।
पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी॥
चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग प्रतिभा भासै।
विविध कला कमनीय कुशलता अपनी मंजु प्रकासै॥
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम अम्ब विलम्ब न कीजे।
प्रिय स्वदेश-अभिमान, मात, सतज्ञान अभय जय दीजै॥
रचनाकाल : 1918