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सूर / मुकेश तिलोकाणी

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सॼी राति
सूर खाऐ
असुरु थिए, ॿारु ॼणे!
कलाक बैदि
सोचे लोचे
दिलि घुरियो नालो रखेसि
खु़श थिए
मंद मंद मुस्किराए।
सिजु बाख कढे
अनमोल खे
सीने सां लॻाए
अॻियां वधे।
को सुवाल करे?
कंहिंखे पाण ॿुधाए!
लोली ॻाए
कोॾाणा ॿुधाए
नकु पटेसि
ॿुचकार ॾिएसि।
वरी शाम थिए
सिजु लहे
आसमानु रंग मटे
पंहिंजे भरि में सुम्हारेसि
वरी
सूर खाऐ!