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कैदी / देवी नांगरानी

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सलाखों के उस ओर तुम
और
इस ओर मैं
‘मिलने का समय हो गया है’
सुनकर आवाज
आंखों से एक दूसरे को
मौन अलविदा कहकर मुड़े
पैर विपरीत दिशाओं में बढ़े
पर मन से
हम एक दूसरे की नजरों से
ओझल नहीं हुए....
मेरी याद में अब भी आबाद है
उस छुहाव की खुशबू
जब तुमने सलाखों को थामे
मेरे हाथों को छूकर
सहलाया था अपने हाथों से!
वह महक आज भी मुझे
याद दिलाती है तुम्हारी
और
मैं अपनी उंगलियों को चूम लेती हूँ!
दोनों क़ैदी-
तुम कैदी उन सलाखों के
मैं क़ैदी तुम्हारे प्यार की!