नया कैमरा चाचा लाए,
दरवाजे से ही चिल्लाए-
कहाँ गया, जल्दी आ छोटू,
बैठ यहाँ, खींचूँगा फोटो!
मैं बोला-यह क्या है चक्कर
छिपा हुआ क्या इसमें पेंटर?
चित्र खींचता बिल्कुल वैसा
मोटा-पतला जो है जैसा।
हँसकर बोले चाचा-छोटू,
वही रहा बुद्धू का बुद्धू!
है प्रकाश-छाया का खेल
बना उसी से सुंदर मेल।
कागज पर आ जाता रूप,
मन कह उठता-क्या ही खूब!
फूलों की सुंदर फुलवारी
हँसती खिल-खिल क्यारी-क्यारी,
कोयल, कौआ या गौरेया
दादा, अम्माँ बड़के भैया।
क्लिक करते ही खिंच आएँगे,
अपनी छाप दिखा जाएँगे।
खोटा-खरा जहाँ भी जैसा,
चित्र आएगा बिल्कुल वैसा,
चाहे कह लो इसको नकली,
मात करेगा लेकिन असली।
जैसी शक्ल, हू-बू-हू चित्र,
समझो इसको अपना मित्र!