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सूरज / श्रीप्रसाद

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सूरज दादा!
चमक रहे हो इतने ज्यादा
मैं तो झुलसा जाता हूँ
प्यास-प्यास चिल्लाता हूँ

जाड़े में भी गरमी लाते
तो तुम हमको कितने भाते
सच है, तुमने फूल खिलाए
पीले आम रसीले लाए
जितने फल हैं, सभी पकाए
हम सबने मीठे फल खाए
दुनिया में सुंदरता आई
धरती किरणों से मुसकाई
भाप बनाया पानी सारा
बादल बनकर बरसा प्यारा

सूरज दादा!
पर अचरज है कितना ज्यादा
तुम हो जलते गोले जैसे
कोई पहुँचे तुम तक कैसे
तेरह लाख गुनी है छोटी
यह धरती, जैसे हो रोटी
बरसों कोई चलता जाए
तब जाकर सूरज छू पाए
लेकिन तब वह जल जाएगा
धरती पर कैसे आएगा

सूरज दादा!
शामसुबह हँसते हो ज्यादा
तब लगते हो कितने भोले
सुंदर-सुंदर आँखें खोले
किरणें बिखराते हो पीली
धरती बनती है चमकीली।