Last modified on 5 मार्च 2017, at 14:17

पृथ्वीक प्रण / शारदा झा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 5 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शारदा झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पृथ्वीक प्रण छैनि
किछु आओर भ' जेबाक
हवा, बसात, पानि, सुरुज, चान किछुओ
मुदा आब नहि रह' चाहैत छथि बनि क'
अपने लोकक ग्रास
नहिं सोहाइत छैनि अपने ह्रास
द'क' अपन सर्वस्व
पाओल मात्र हिंसा आ अवहेलना
सेहो कतेक बर्ख आ दिन?
चाही त आब किछुओ नै
अपन पूर्वसौन्दर्यक बोधो नहि
जँ रहितनी कनिको भान
जे भ' जेतैनि कहियो साँसत मे प्राण
त कहियो अपन आगिक पिंड केँ
सेराय नहि दितथिन
जरिते सुरुज जकाँ विलीन भ' गेनाइ अनन्त मे
होइतनि बेसी आह्लादकारी
समुच्चा संसार!!
आब मात्र करू प्रतीक्षा
कियेकि आब भेल जाइत छैनि
धरित्रीक आँचर दया सँ रहित
चढ़ि रहल छैनि हुनका पित्त
विनाशक सूचना स्वतः ज्वालामुखी बनि
फुटबाक बाट ताकि रहल अछि!