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हरबाहक मजमून / विकाश वत्सनाभ

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एखन माथ सँ एँड़ी धरि
टघड़ैत अछि घामक पलार
बेधने अछि गतर मे
हरक चोखगर फार
अदंकित केने अछि
सहस्रबाँहु पाकड़िक गाछ।
कतबहुँ कंडरिअबैत छियै
परिबोधैत छियै,
मुदा एहि हहारोक गनगन्नी
चकरघिन्नी सन माथ मे बेआपित
बेसम्हार भेल,
टभटभाइत अछि सदिखन
गुड़ घाओ सन।
कंक्रीटक एहि अथरबोन मे
अपसिआँत बौआइत
एखन हँसोतैथ छी अखरा माथ
कोड़यबैत छी एँड़ी तरक 'प्लास्टर'
नोकगर कलम केँ बुझैत छी फार
आ जिस्ता केँ परतीक पपड़ी मानि
दकचै छी ताबड़तोड़
वस्तुतः-
ई अदंक
ई हहारो
ई हाकरोस
जे झंखाड़ पाकड़ि सँ ससरि
सन्हिआएल अछि हमरा मे
काल्हि अहलभोरे
एकर ठाढ़ि मे
ससरफानी लगौने छल हरबाह
आ परसूक्की साँझ एहि ठाम
गोसाउनिक भसान मे
भराएल छल बिदागिरीक खोंछि
मुठ्ठी भरि सोनक धान सँ ...