Last modified on 8 मार्च 2017, at 22:33

झुण्ड / कुमार कृष्ण

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:33, 8 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बीजों की रखवाली में काठ का आदमी
आखिर कब तक पहरेदारी कर सकता है
हमेशा कारगर नहीं होती दहशत
बिजूका अब भय का दूसरा नाम नहीं
अच्छी तरह जान गई हैं चिड़ियाँ
काठ और चीथड़ों का सच
खेत पर हमला करने कोई भी पक्षी
अब अकेला नहीं झुण्ड में आता है
बिजूका की दहशत के खिलाफ
पक्षियों ने बना लिये हैं
अपने-अपने झुण्ड
झुण्ड ज़िन्दगी का दूसरा नाम है।