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थिएटर-4 / विष्णुचन्द्र शर्मा

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पेड़ों से, धूप से पहाड़ों से
मिलते हैं पीले फूल
फिर मुझसे कहते हैं:
‘धूप मेरी माँ है
गाछ मेरे पिता
और पर्वत से
सूर्य रोज आता है
मिलने इसी धरा पर!’