थोड़ा रुककर
कोल्हापुर के पाहुन बादल
चले जा रहे ...
गन्ने के खेतों के ऊपर
केलों के पौधों के सिर तक!
(मेघ तुम्हारी तरह भरा हूँ
नदी मुझे पीती है
भर मन!)
थोड़ा रुककर
कोल्हापुर के पाहुन बादल
चले जा रहे ...
गन्ने के खेतों के ऊपर
केलों के पौधों के सिर तक!
(मेघ तुम्हारी तरह भरा हूँ
नदी मुझे पीती है
भर मन!)