मांस का एक अदद लोथड़ा,
जिसके पीछे की पूँछ कहीं खिर गई है,
शताब्दियों तक चलते-चलते रगड़ खाते;
आगे जिसके धधकताहै-फ्रॉयड का काम कार्यालय-
सेक्स सेक्रेटेरिएट,
सामने है जिसके-
अँधेरे में कार की चमकती सर्चलाइट सा
अस्तित्व का केन्द्र-पेट, पेट और केवल पेट!
जिसमेंसब भक्ष्य, अभक्ष्य, घूस, साम्राज्य
सब चुपचाप समा जाएँ,
और डकार न आए! ऐसा है यह आदमी!
गिरगिटिया आँखों के ऊपर-
खोपड़ी में भुतही कोठी-
जिसमें भरे हैं मकड़ी के जाले और भुस-
मॉडर्न साइकॉलोजी का मूल्यवान् रॉ मैटीरियल!
निर्वसन, नंग-धड़ंग सा व जीभ चटखारता-
हाथ में बंदूक लिए चला आ रहा है-
यह बीसवीं सदी का आदमी-
डार्विन का जीवित वनमानुस-
बाईस संस्कृतियों का यह साक्षात् परिपक्व फल!
”पूरे बाट परे सरकावे, बेगा बेगा बोले“
लीडर, डिप्लोमैट, एकेडेमिशियन!
कुशाग्र, फुर्तीला और इंटैलिजेंट!
1973