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यात्रा / विजय किशोर मानव

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तुम व्यस्त रही
अपने घर के काम-काज में
बच्चों में
नींद न पूरी होने की यातना में,
मैं बिलकुल खाली रहा
घर चलाने के लिए
कमाते हुए
रहते हुए
घर में
तुम्हारे बच्चों के साथ,
सोते हुए घर में
जागता रहा,
जाता रहा बार-बार
वर्षों को चीरता
तुमसे हुई पहली मुलाकात तक,
मैं दौड़ते-दौड़ते थक गया
और तुम व्यस्त रहते-रहते
एक ही यात्रा में।