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इतिहास / विजय किशोर मानव

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दसवें दर्जे की मेरी
इतिहास की कापी,
आखिरी पन्ने का
नीचे का कोना
आज पचास की उम्र
छूते हुए भी
सुरक्षित है मेरे पास।
अब भी खोजता हूं
भीड़ों के चेहरों में कभी-कभी
सोचता हूं कौन थीं तुम
अब भी लिखा है साफ-

‘मैं सिर्फ तुम्हारी हूं’
आज भीन पढ़ने की हद तक
नीचे लिखा तुम्हारा नाम।
तुम जो भी थी
मैं नहीं समझ पाया
तुम जुड़ना जानती थीं या घटना...?