Last modified on 21 मार्च 2017, at 10:44

अप्रवासी / रमेश आज़ाद

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:44, 21 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश आज़ाद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गगनचुम्बी इमारतों के बीच
जहां
आकर बसे हैं
अपना कहने को कोई दरवाजा नहीं है।

जहां
छूटा था घर
वहां लौटने का
अब कोई रास्ता नहीं है...