जब कभी नया सत्य उगा है
समय के श्रीमान लोगों को
जरा कड़वा लगा है
क्योंकि बकरे के लिए जो ठीक है
वह कसाई को नहीं हितकर लगा है।
इसलिए हर सत्य-वक्ता को
यहां मारा गया है
पत्थरों से कुचलकर
भूख और बंदूक से
या सलीबों पर उसे टांगा गया है
हत्याओं की असफलता ने
बना दिया है उन्हें होशियार
हत्यारे जान गए हैं
कि सत्य-वक्ता को मारना बीमार को मारना है
और यह बीमारी
सत्य-चिंतन की महामारी इस तरह नहीं मरती
उन्होंने कर लिया ईजाद हत्या का
अहिंसक, सभ्य और परिष्कृत तरीका
हमारे दिल और दिमाग के बीच रख दिया है
डुप्लीकेट सत्य का स्वचालित कैप्सूल
जो हमारी भावनाओं का
विचारानुवाद करता है
उन्हीं के अनुकूल।
ये हमीं कहते हैं न
कि हमारे अभाव हमारे भाग्य का फल है
कि हमारी निराशाओं के गीत मधुर होते हैं
दुम हिलाते हुए स्वामिभक्त कुत्ते की तरह जीने को
शराफत हमीं कहते हैं न!
जब कोई बलात्कारी
दबोच लेता है हमारी
किसी सावित्री को
हमारे सामने,
तब हमारे भीतर यह कौन बोलता है
कि हमें इस बात से क्या लेना-देना
कि यह तो सब चलता है!
अपने बचे-खुचे पुरुषत्व की पीड़ा से चीख!
चीख इस साजिश के खिलाफ
तोड़ दे कविता और संगीत की सभी सीमाएं
अपनी पूरी आवाज से चीख,
चीखना कोई आतंक नहीं है,
और कायरता कोई अनुशासन नहीं है मेरे दोस्त।
निकाल, बाहर निकाल-
अपने भीतर से शत्रु के इस प्रवक्ता को
बाहर निकाल!