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गुरूजन वन्दना / रमापति चौधरी

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गुरूक शरण गहु गुरूक चरण धरू
गुरूक कहल करू गुरू छथि गतिया ॥

गुरूक वचन सुनु गुरू जन पद धरू
गुरूजन पथ धरू गुरू छथि मतिया॥

यजन पूजन करू भजन मनन करू
भवन हवन करू उर धरि रतिया॥

शुभगति शुभमति सुधि बुधि शुचि रूचि
भेटत, मेटत भव दुख केर गठिया॥

नीक नीक बात सुनु देवी देव कथा सुनु
वेद आ पुराण सुनु भए अति नतिया॥

मातु-पितु देव बुझु सेवन सभक्ति करू
जनहित बात करू नित प्रति बतिया॥

श्रमक गठन करू सहज मिलन करू
हिलि मिलि काज करू उरधरि मतिया॥

कर जोड़ि नमथि कहथि देथु गति मति
विनत रमापति छथि मन्दमतिया॥