Last modified on 29 मार्च 2017, at 16:03

सैनिक रोॅ संदेश / धीरज पंडित

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 29 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज पंडित |अनुवादक= |संग्रह=अंग प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जान गंवाय के बात न´ करियोॅ
हमरोॅ घर तोंय जखनी जहियोॅ
हमरोॅ कानै नं पारै माय हो भैया
कहियोॅ तोॅय समझाय।

हमरोॅ पत्नी छै दुलरै तिन
हाल जे हमरोॅ सांझ के पुछतिन
चलती बेर कही दै छियोन
डिबिया दियों भुताय हो भैया। कहियोॅ।

खेतोॅ मेॅ मिलतोॅ हमरोॅ बाबू
कहियोॅ दिल पर राखतै काबू
दुश्मन मारी भगैलकौन लेकिन
जानोॅ के बाजी लगाय हो भैया। कहियोॅ।

छोटकी बहिनियाँ जखनी पुछतोॅ
धीरे-धीरे ”धीरज“ टुटतोॅ
हय बंदूक उलटाय केॅ तोहें
आँखी केॅ लियो झुकाय हो भैया। कहियोॅ।

जों कोय मिलतों बंधू-भाई
गामोॅ में करियोॅ हमरोॅ दुहाई
हाल जे हमरोॅ उ सब पुछतोॅ
सीना लियोॅ फुलाय हो भैया। कहियोॅ।
कहियों तोंय समझाय।