Last modified on 29 मार्च 2017, at 16:06

उलहनो / धीरज पंडित

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 29 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज पंडित |अनुवादक= |संग्रह=अंग प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हे-गे-माय तोंय कि बोलैं छैं?

कहै छेलैं तोंय हे-रे-छोटू
लानी दे हमरा पूतहू
जेहिया से हम्में लानले छी सीता
तोंय पढ़ै छै रोजे गीता
नय मिललै दहेज में कुच्छू तेॅ
उटका पैची कन्हैं करै छैं-हे-गे-माय

उमर साठ तोरोॅ बीतलोॅ जाय छोॅ
मुँहोॅ सेॅ बोली छुटलोॅ जाय छोॅ
करनी-धरनी साढ़े सताइस
हमरोॅ गामेॅ करै उपहास
हय रंग मेॅ तोंय नाक डुबैबैं
छोटा सेॅ कैन्हेॅ बात सुनै छै-हे-गे-माय

करै छेलै पेहलेॅ भी झगड़ा
अलग होलै जेकरा सेॅ बड़का
केतना सुख भोगै छै बड़की
वैसे ना बोलै छै छोटकी
अंतिम सांस तक साथैं रहभोॅ
लुतरी सबकेॅ कैन्हे लारैं छैं-हे-गे-माय

औरत उ तेॅहूँ छैं औरत
झगड़ा से सब बात नदारत।
सच्चा सुख आरू सच्चा बेटा
करतोऽ घरनी तोरो सेवा।
जे रंग बेटा-वैन्हें पूतहू
बोलैं हेकरा कि मानै छैं-हे-गे-माय

दुनिया में सच्चा उ छै बेटा
करै जे माय-बाप के सेवा।
घरनी के नय बात मानबो
जे कहबैं तोय वही लानबो।
बोलैं तोंय हंसी-हंसी के
कपसी-कपसी कैन्हे कहै छैं
हे-गे माय तो कि बोलै छैं?