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54 / हीर / वारिस शाह

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केही हीर दी करे तारीफ शायर मथे चमकदा हुसन महताब<ref>चंद्रमा</ref> दा जी
खूनी चूडियां रात जिउं चंद दुआले सुरख जिउं रंग शराब दा जी
नयन नरगसी मिरग ममोलड़े<ref>ममोला, एक लाल सिर वाली चिड़िया</ref> दे गलां टहकियां फुल गुलाब दा जी
भवां वांग कमान लाहौर दिसन कोई हुसन ना अंत हिसाब दा जी
सुरमा नैनां दी धार विच फब रिहा चड़या हिंदते कटक पंजाब दा जी
खुली विच त्रिंजनां लटकदी ए हाथी फिरे जिउं मसत नवाब दा जी
चेहरे सोहणे ते खत खाल बणदे खुशखत जिउं हरफ किताब दा जी
जेहड़े देखणे दे मुशताक आए वडा फाइदा इहनां दे बाब दा जी
चलो लैलतुल कदर<ref>रमज़ान की एक सुभागी रात जब एक रात की इबादत का सवाब हज़ार रातों की इबादत के बराबर माना जाता है</ref> दी करो जिआरत वारस शाह एह कम सबाब<ref>पुन्य</ref> दा जी

शब्दार्थ
<references/>