Last modified on 30 मार्च 2017, at 11:25

वसीयत / कर्मानंद आर्य

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्मानंद आर्य |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सबने कहा
वह आकाश सी है
मैं बादलों के पार चला गया उससे मिलने
सबने कहा वह झील सी है
मैं पंडुकों की तरह तैर आया नदी
किसी ने कहा वह ओस की पहली बूंद की तरह है
मैं हथेलियों पर इकट्ठा करता रहा पराग
किसी ने कहा वह हार की तरह लगती है
मैंने दुलार पा लिया खुद में
किसी ने कहा धनिये के फूल की तरह जामुनी है वह
मैं भौरें की तरह खोया
किसी ने कहा वह नींद है, किसी ने कहा हँसी
किसी ने कहा वह चाँद की चिकनाई है
किसी ने कहा मलहम
मैंने उसे कई बार देखा है
गरीबी में वह और भी सुन्दर दिखाई देती है