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536 / हीर / वारिस शाह

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खेड़ा खाए के मार ते भज पया वाहो दाह रोंदा घर आंवदा ई
एह जोगिड़ा नहीं जे धाड़ कोई हाल आपना खोल्ह सुणांवदा ई
एह कांवरू<ref>देश का नाम, कामरूप</ref> देस दे सेहर जाने वडे लोहड़े ते कहर<ref>जुल्म</ref> कमांवदा ई
ए दिओ उजाड़ विच आन लथा नाल घुरकियां<ref>कचीची</ref> जिंद गवांवदा ई
नाले पढ़े कुरान ते दे बांगां चैंकी पांवदा संख वजांवदा ई
वारस मार ते कुट तहि-बार<ref>तह लगाना</ref> कीता पिंडा खोहलके जट वखांवदा ई

शब्दार्थ
<references/>