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अनुगीत-3 / राजकुमार

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मुँह बैनें बयार छै हुनकोॅ
आदमी बस शिकार छै हुनकोॅ

गाँव-घर लोग-बाग छै थर-थर
फेरू ऐलोॅ बहार छै हुनकोॅ

ई हवा छै कि कोय छै कातिल
फूल्हौं पर कटार छै हुनकोॅ

हमरोॅ फटलोॅ कमीज-चद्दर सें
खूब सजलोॅ बजार छै हुनकोॅ

जेना जीवन ई बिछौना हुनकोॅ
हमरोॅ किस्मत सिगार छै हुनकोॅ

कैद कैनें रहै सुरुज हमरोॅ
कत्तेॅ नीयत बीमार छै हुनकोॅ

‘राज’ आगिन के खोरनें छै हुनी
आय धू-धू दुआर छै हुनकोॅ