है ये ख़ुशफ़हमी मगर कोई भी खुशदिल है कहाँ
इस हक़ीक़त से हर इक आदमी ग़ाफ़िल है कहाँ
जिसमें मौजूद बसारत भी बसीरत भी हो
ढूँढ लेता है वो तूफ़ां में भी, साहिल है कहाँ
ज़िन्दगी जीने का जिसने भी हुनर सीख लिया
मस्अला कोई भी उसके लिए मुश्किल है कहाँ
रूबरू थी वो मेरे दिल में भी मौजूद थी वो
और मैं पूछता-फिरता था कि मंज़िल है कहाँ
ग़म ही ग़म सहते हुए ऊब चुका हूँ 'दरवेश'
जी लगा लूँ मैं जहाँ बोल, वो महफ़िल है कहाँ