मैंने तो उगाई थी बेशुमार ककड़ियाँ
फिर भी नहीं आई वह खूबसूरत लड़की उसे चुराने
मेरी कविता का खेत आखिर पक गया
वह नहीं आई
मैं ढूँढ़ता रहा उसे बहुत से घरों में
ढूँढ़ता रहा अपने बच्चों की किताबों में
कहीं नहीं मिली मुझे वह खूबसूरत लड़की
एक दिन शहर की सड़क पार करते हुए
मैंने उसे अचानक देखा -
वह एक खूबसूरत तस्वीर से चुपचाप खड़ी
पता नहीं क्यों हँस रही थी।