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बैल: दो / कुमार कृष्ण

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जिस दिन तुमने
ज़मीन को खेत कहा
उसी दिन बाँध दी रामसिंह ने
एक चमकदार घण्टी
तुम्हारी उस मजबूत गर्दन के साथ
जिसकी ताकत का सहारा लेकर
तुमने की थी हिम्मत
पहली बार ज़मीन को उखाड़ने की।
तुम करते रहे प्यार
घण्टी को
बच्चों के खिलौने की तरह

खाते रहे मार हर बार
मौसम बदलने पर।

घास खाने से लेकर
ज़मीन खोदने तक
हर संघर्ष के साथ बजती रही
तुम्हारे गले की घण्टी
सोता रहा सिखर दोपहर में रामसिंह
इसकी आवाज़ पर।

तुम नहीं जानते
गर्दन के नीचे लटकी घण्टी
अलार्म है तुम्हारी हर हरकत का।

रामसिंह ने पहचान ली ऐन वक़्त पर
तुम्हारी गर्दन की ताकत
बरसात महीने के पन्द्रहवें दिन
बाँध दिया तुमको
एक मजबूत खूँटे के साथ।

रामसिंह जानता है अच्छी तरह
तुम रोटी
जूता
लगातार संघर्ष करने वाली
भूरी ताकत
एक साथ हो
जो फैला सकती है किसी भी वक़्त
सींग की दहशत।

मेरे दोस्त,
कोई मायने नहीं सींग की दहशत के
उखाड़ सकती है
तुम्हारे कन्धों की ताकत
ज़मीन में गड़े खूँटे
नहीं तोड़ सकती दहशत
रामसिंह की घण्टी।
फैलने लगी है तुम्हारी भूरी ताकत
काले, सफेद, लाल कई रंगों में।

हर जूते से आ रही
हल के लोहे की आवाज़
फटी हुई गर्दन चमक रही
गोल रोटियों में।
तुम्हारे खून के पक्ष में
गवाही देने को
हो गई हैं तैयार लाठियाँ
मेरे दोस्त,
यह रामसिंह की घण्टी उतारने का
सही वक़्त है
तुम एक-दूसरे के
कन्धे खुजलाना शुरू कर दो
और शामिल कर दो
खुद को रेवड़ में।