Last modified on 5 मई 2017, at 12:29

बाढ़ / रंजना जायसवाल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 5 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ दे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नहीं पड़े झूले
अमराइयों में इस बार
नहीं झूल पाए कुंआरे सपने
नए ब्याहे अरमान
बहनें बाट जोहतीं रह गईं
तीज पर भाई नहीं आया
सखियों का संग
मेंहदी के रंग
धानी परिधान
माँ के पकवान
सावन कजरी
मल्हार गीत
बागों के झूले
आँसू बनाकर बह निकले
नहीं लौट पाए
परदेश से प्रियतम
रिम-झिम बरसते सावन में
साथ-साथ अलसाने की चाह
बन गयी चातक की आह
नाग देवता को नहीं मिला
इच्छित लावा -दूध
नहीं खोदे गए अखाड़े
गुड़ियों का त्योहार
रह गया धुनता सिर
वे हाथ जो भर देते थे
खलिहान दुकान
इंसान भगवान सबका पेट
पसरे हैं राहत के दानों के
लिए
बाढ़ ने छीन लिए
गाँव-घर से
छोत-छोटे आनंद के क्षण
त्योहार की खुशियाँ।