चलते चलते, उठते बैठते, यूँ ही इधर उधर
मिल जाता है अक्सर गॉड पार्टिकल
वो बीज बन भूमि में जाता, सूर्य बन रश्मि छिटकाता
वायु बन लहराता जंगल, बरसता बन बादल
गॉड पार्टिकल
नदियों की कलकल, सागर की गहराई
गगन का विस्तार, पर्वत की ऊँचाई
पक्षियों का कलरव, धरती का सम्बल
देता है अनुभव, गॉड पार्टिकल
बगिया में मिलता फूल बन के, राह में मिलता धूल बन के
कभी बन करमिलता पत्थर
और दे जाता फल
गॉड पार्टिकल
अहल्या के लिए ही राम नहीं, राम हेतु केवट
सुदामा के लिए ही श्याम नहीं, कृष्ण हेतु चावल
गंगा ही नहीं मानव के लिए, भगीरथभी बन करता तप
गॉड पार्टिकल
हो जाए विश्वास तो,होगा ये अहसास
बस साथ साथ
पास पास, रहता है प्रतिपल
गॉड पार्टिकल
चलते चलते, उठते बैठते, यूँ ही इधर उधर
मिल जाता है अक्सर गॉड पार्टिकल