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बालक / चन्द्रमोहन रंजीत सिंह

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जिसने ही पढ़ा होगा जरा ध्यान से इतिहास।
उसको ही मिला होगा इस बात का आभास।
लड़कों पर ही निर्भर है किसी देश की सब आस
बालक ही मिटा सकते हैं निज देश की सब त्रास।
चाहे तो किसी देश को बस स्वर्ग बना दें।
निज धर्म से हट जाएँ तो मिट्टी में मिला दें।
निज देश की उन्नति का है सब भार इन्हीं पर।
निज धर्म की रक्षा का है सब भार इन्हीं पर।
इनकार इन्हीं पर है तो इकरार इन्हीं पर।
इन्हीं पर रिआया भी है सरकार इन्हीं पर।
बालक जो सुधर जाए तो सब देश सुधर जाए।
हर एक का दिल मोद से भंडारा सा भर जाए।

बालक ही तो है ंदेश के सम्मान का भंडारा।
बालक ही तो है ंदेश के धन-धान्य के करतार।
बालक ही तो है ंदेश की बल-शक्ति का आकार।
बालक ही तो है ंदेश के निज धर्म का आगार।
सच मानो अगर देश के सब बाल सुधर जाएँ।
सब सिरनाम के बाशिन्दों के घर मोद से भर जाए।

इनके ही बिगड़ने से बिगड़ जाता है सब देश।
इनके ही बदलने से बदल जाता है सब देश।
इनके ही भले होने से कुछ आती नहीं पेश।
इनके ही भले होने से मिट जाता है सब क्लेश।
इनके ही हाथों में है सब आगे आसा।
इनके ही दमों चलती है सद्धर्म की स्वासा।

सच मानिए निज देश के करतार यही हैं।
सच जानिए निज देश के भरतार यही हैं।
सच देखिए निज देश के हरतार यही हैं।
सच देखिए निज देश के रखवार यही हैं।
इनके ही बिगड़ने से बिगड़ जाता है सब देश।
इनके ही सुधरने से जाता है सब देश।

जिस देश के बच्चों में हो उत्साह की लाली।
करते न हों निज चित्त को उत्साह से खाली।
खेलों में भी तजते न हों निज ओर की पाली।
पड़ जाए कठिनता तो समझते हों बहाली।
बस जान लो उस देश में आनन्द का है वास।
आपत्ति फटकने नहीं पाती है कभी पास।