‘‘का भैल, अपने आप के काहे हिन्दुस्तानी कहलावत हैले,
हिन्दुस्तान से ऐले का?’’
कोई और तो हमके ‘‘कुली’’ बोलावत,
हमार घरवे के एगो भय्वा बोले,
ना हम सरनामी तो न बोलब, का हम ‘‘बोइती’’ से ऐली का?
हम तो ना ऐली हिन्दुस्तान से, पर आइल हमार ‘‘बाप-माई’’,
गठरी में बाँध के लाइस, अनमोल संस्कृति महान,
‘‘कुली’’ तो ना हैली, लेकिन कौन सरम!
उ अनमोल गठरी उठाबे हम, जोन देइस हमार पूर्वज हमके दान!
‘‘बाप-माई’’ खून पसीना कर देइस एक सामान,
ना देखिस ‘‘बोइती’’ के चहटा ना धसान,
ताकि हमार भविष्य ना रहे सुन-सान,
ओकर बोली काहे ना बोली? जरा इस पर तू कर ध्यान!