Last modified on 26 मई 2017, at 18:12

शरणार्थी / सुशीला सुक्खु

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 26 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला सुक्खु |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीड़ से घिरी हुई
लेकिन बेहद अकेली
कितनी बेचैनी
डर से डर
जगह से जगह
देश से देश की भागदौड़
किसी एक जगह टिककर
रहना मुश्किल
कितना असहाय जीवन
सन्तुष्टि के लिए व्याकुल रहती
चंचल मन की भाँति
चाहकर भी घर लौट नहीं सकती
घर लौटने के इन्तजार में
शायद कभी लौट सकेगी
अपना सपना लेकर
लेकिन कब पता नहीं।