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कुत्ता / सुशीला बलदेव मल्हू

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कुत्ता,
कितना भी वफादार हो,
मनुष्य उसे कुत्ता ही कहता है।
कुत्ते ने,
वेद रामायण नहीं पढ़ा,
फिर भी अपना धर्म निभाया है।
रक्षा करता है,
मालिक की,
फिर भी मालिक ने उसे
कुत्ता ही कहा।

कुत्ते ने तब से अब तक
अपनी जबान नहीं बदली
क्योंकि कुत्ता,
अपने पूर्वजों की सीख का,
पालन करता है।
वह अपने संस्कार नहीं बदलता है
फिर भी मनुष्य उसे
कुत्ता कहता है।

कुत्ता,
मालिक के पैरों को चाटकर
कृतज्ञता, प्यार और
सद्भाव प्रकट करता है,
मनुष्य जब तलवे चाटता है,
तब छल कपट की तैयारी करता है।
फिर भी मनुष्य उसे कुत्ता कहता है।