Last modified on 27 मई 2017, at 16:50

पहचान / ब्रज श्रीवास्तव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 27 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भट्टी जैसे हुये रास्ते
लपट भी है क्या उसी वास्ते.
सूरज का मौसम है भाई.
आगों ने भी आग लगाई

वह ऐसे में
श्रम करने को
मजबूर है
वही मजदूर है.

हमदर्दी के दिन तो आते
पिन के जैसे उसे चुभाते
फुसला कर करते हैं शोषण.
साजिश भरा है दोषारोपण.

जिससे उसका मालिक
रहा सदा से क्रूर है.
हां, वही मजदूर है

जिसके बिन, न बिजली, नल
जिसके बिन, न सड़क, ओ घर
खुद से ही पहचान नहीं है
जो अब भी खुद से दूर है.
हां वही मजदूर है