Last modified on 5 जून 2017, at 17:26

टूटती सांस को बल मिले / लाखन सिंह भदौरिया

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 5 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाखन सिंह भदौरिया |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

टूटती साँस को बल मिले, शक्ति सम्बल बना ज़िन्दगी।
हर पथिक जो चला जा रहा,
लू-लपट से जला जा रहा,
विश्व मरुथल बना जा रहा,

प्रीति-शाद्वल बना, ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना, ज़िन्दगी।

धूल हर फूल पर है जमी,
आज शंकालु हर आदमी,
हर नयन में नमी की कमी,

जाह्नवी-जल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।

शक्तियों का नहीं ह्रास कर,
आत्मा का तिमिर नाश कर,
सृष्टि-सर में भले वासकर,

मुक्त-शतदल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।

जब तिमिर छा रहा है घना,
क्यों न हर साँस दीपक बना,
आत्म केन्द्रित न कर साधना,

लोक मंगल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।

आज भटके हुए हैं चरन
खोजते फिर रहे, मुक्ति-मन,
आस्था को करा मत भ्रमन,

तीर्थ-स्थल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।