Last modified on 21 जून 2017, at 10:44

घर / मुकेश नेमा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:44, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश नेमा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ देख सकें आप
उजड्ड बिस्तर पर
चादरें झुँझलाती!
लटकने के लिये
दरवाज़े पर
उलझती आपस में
जीन्से बहुत सी

अलसाये पडे कोने में
मुँह छुपाये
ढेर से जूठे बर्तन
लटका शर्मिन्दा
शू रैक पर
तौलिया भीगा हुआ
ताकता भौचक्का
बिखरी किताबों को
पुर्ज़ा पुर्जा अख़बार,

पायी जाती हो जहाँ
गंदे ढीठ जूतों से
बराबरी से लड़ती
चप्पलें शरारती

जहाँ रहते हों
बहते नल और
खुले दरवाज़ों से
लापरवाह बच्चे,

करने के लिये
दुरुस्त सब
उपलब्ध हो
तवे से उतरती
गरम रोटियों और
शुद्ध घी से महकती
मूँग की दाल सी
स्वाद भरी
नाराज माँ एक

जगह ऐसी
होती नहीं मकान
कहा जाता है उन्हें
घर हमारे यहाँ