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बदला / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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हे, विधाता!
हमरायः लिखलेॅ कपारोॅ मेॅ लात-जूता?
बेटॉ त्तेॅ मानतैं नञ छै,
पुतौहेॅ त्तेॅ गनतैं नञ छै;
जैहा सेॅ मरलोॅ हमरोॅ घरनी;
तैहा सेॅ हुँकरै छै हमरोॅ जिवनी,
हे, राम-सीता!
यही वास्तेॅ देल्हेॅ हमरा धीया-पुता!
हे विधता!
हमराय लिखलेॅ कपारोॅ में लात-जूता?
लोटा नञ दै-छै-पानी,
थमकी केॅ दै-छै खाना-आनी;
जेकरा कहबोॅ, वैंहीॅ दुषतोॅ,
हे, धरती-मात!
तोडी-देॅ हमरोॅ सब्भैं सेॅ नाता।
हे, विधाता!
हमराय लिखलेॅ कपारोॅ में लात-जूता?
जे रं हमरा सताय छोॅ, वैही रं तोरॉव सतातोॅ
जिनगी में छौंव बेटा, तोरा बुझातोॅ
आय छी-छी करै छोॅ हमरा सेॅ,
काल घृणा करतोॅ तोरॉव सेॅ।
हे, शास्त्र-गीता!
बात "संधि" रोॅ नञ होतै बेरथा।
हे, विधाता।
हमराय लिखलेॅ कपारोॅ में लात-जूता?