आकाश शूनोॅ,
धरती सूखलोॅ।
पानी बिना जीव तरसे-
ऐसेॅ जाय छै समय बितलोॅ
हाथ पेॅ हाथ धरी किसान,
मनेॅ-मन छगुनै छै साँझ-विहान।
वेॅहेॅ सूरज वेॅहेॅ चान,
तय्योॅ कैन्हेॅ होय छै निनान।
"संधि" हमरोॅ बात सुनोॅ
धरती छै परती पड़लोॅ।
कुछ तेॅ करोॅ निदान
आकाश सुन्नोॅ
धरती सुखलोॅ।