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दोस्तारी / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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आबोॅ बिलैया हमरोॅ पास,
दुयोॅ रहबै एकेॅ साथ।

हम्में मूसोॅ तोहेॅ बिलाय,
दोस्ती करबै हाथ मिलाय।
हम्में देबोॅ रस्ता बताय,
तोहें चलबेॅ थुबुड़थाय।
केकरोॅ नै करबै दुहूँ आश।

घरोॅ भीतरोॅ में घोर बनैबै,
दोसरा रोॅ ओन चोरायकेॅ खैबेॅ।
देखतैं हम्में बिली तोहेॅ धरनी पेॅ जैबे,
दुन्हूँ मिली के समय बितैवेॅ
 "संधि" संधि करी करतै बास।