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ठक / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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एक डंगाल पेॅ एक गाछ छेलै महुआ,
ठार पात सें भरलोॅ देखै में लागै झौवा।

ओकरोॅ खोड़हर में रहै छेलै एक तोता,
वैं दिन रात राम-राम रोॅ लगाय छेलै गोता।
जें तें ओकरोॅ आवाजोॅ रोॅ बनेॅ श्रोता,
वै रोज-रोज भजै रोॅ दै न्योता।
मतुर कोय नै लूटै लेॅ पारे राम-राम रोॅ खोवा,

एक दिन एक शिकारी केॅ लागलै मौका बैठै रोॅ,
आय हमरा मौका लागलोॅ छै बझाय आरोॅ ठकै रोॅ।
शुरू करलकै वैं ओकरोॅ जिनगी हहकै रोॅ,
तोता बेचारा फंसलै, मतुर राम-राम शोर करलकै बकै रोॅ।
गजब छोॅ "संधि" तोहें मोन ठकौवा।