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मुरेठा / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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नजर सें नजर मिललै, मतुर दिल छै अधूरा,
दिल ललकै-ललचै मतुर, कहिया होतै पूरा?

छोड़ोॅ दुनियां रोॅ डोॅर सब तजि बनोॅ निडर,
प्रेमी-प्रेमिका कोय गम नै करोॅ बनोॅ बेफिकर।
दिल केॅ रूबरू होय केॅ तोड़ोॅ सिकर,
शरम केरोॅ भरम तोड़ी करोॅ प्रेमोॅ रोॅ जिकर।
दुनिया केॅ जाहिर करोॅ पटवासी पिन्ही शेखर,

बात-बात दुइयो दिन-रात में,
आभियोॅ लै केॅ चलोॅ एक साथ में।
प्रेम करोॅ फोॅल मिलतै, मिलला रोॅ बाद में,
पढ़ोॅ, लैला मजनू, हीर रांझा रोॅ संवाद में।
दुन्हूँ तन्हा पलपल कटाय छोॅ "संधि" गुजारा।