Last modified on 28 जून 2017, at 16:18

नकली शेर / सोहनलाल द्विवेदी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनो गधे की एक कहानी,
उसने की कैसी शैतानी।
जब होती थी रात घनेरी,
तब करता था वह नित फेरी।

चुपके चुपके बाहर जाता,
खेतों से गेहूँ खा आता।
गेहूँ खा-खा मस्ती छाई,
तब क्या उसके मन में आई।

अब आगे की सुनो कहानी,
देखो, औंघाओ मत रानी।

खाल बाघ की उसने पाई,
उसने सूरत अजब बनाई
पहनी उसने खाल बदन में,
चला खेत चरने फिर बन में।

खाल पहन ली ऐसे वैसे,
गदहा बाघ बना हो जैसे।
फिर खुश होकर सीना ताने,
दिन में चला खेत को खाने!

डरे किसान देख कर सारे,
भागे झटपट बिना विचारेे।
तब कुछ गरहे बोले ही ज्यों,
यह भी बोला चीपों चीपों!

खुली बाघ की कलई सारी,
तब तो शामत छाई भारी।
डंडे लगे धड़ाधड़ पड़ने,
लगे गधे के पैर उखड़ने।

भगा वहाँ से यह बेचारा,
सभी तरफ से हिम्मत हारा।
गिरते पड़ते घर को धाया,
मरते मरते प्राण बचाया।