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पहला प्रेम / सोनी पाण्डेय

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जब तुम पहली बार मिले
मौसम कुछ गुलाबी हुआ था
तभी से गाँठे लिए फिरती हूँ
दुपट्टे के कोर में गुलाबी रंग ....

मेरे दुपट्टे के कोर से निकल कर
छिटकता है चाँदनी के चँदावे में
गुलाबी रंग
प्रेम इस तरह गुलाबी होता है

हर चाहने वालों के लिए प्रेम
चाँदनी रातों में ......

मेरे दुपट्टे से निकलकर
फैलता है गुलाबी रंग
जब जागता है सूरज
हर चाहने वाले के मन में
मिसरी सा घुल जाता है
गुलाबी रंग
इस तरह प्रेम जवान होता है
जब सूरज थोड़ा सुनहरा होता है .....

जाते -जाते बसन्त
तुम रंग गये
प्रेम के गुलाबी रंग में
मेरी डायरी के पीले पड़े पन्नों में
बचा है
सन्दूक के नीचले कपड़ों में दबा
मह - मह महकता
महुए के गन्ध में घुला
प्रेम का गुलाबी रंग ....

तुम भूल गये
जाते बसन्त के साथ
इस लिए जब लौटना
हमारी गली में
महसूसना
हवाओं में तैरता मिलेगा
मेरे प्रेम का गुलाबी रंग ...